रात 11 बज रहे थे, जब मेरे लाल अश्विनी काछी की शहादत की जानकारी हुई। मेरे कान सुन्न हो गए थे। कलेजा बैठा जा रहा था। हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि पत्नी कौशल्या को कैसे बताऊं कि उनका बेटा देश पर शहीद हो गया है। मेरे बेटे की शहादत के दो साल हो गए, अब भी मेरे जख्म भरे नहीं हैं। जब भी किसी जवान की शहादत सुनता हूं, तो मेरे बेटे का चेहरा सामने आ जाता है।
मेरा बेटा मुझे फलक पर बैठा गया। मुझे देखकर लोग बोलते हैं, कि ये देखो शहीद अश्विनी के पिता हैं, तो मेरा मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाता है। दैनिक भास्कर से पुलवामा के शहीद अश्विनी काछी के पिता सुकुरू प्रसाद काछी ने अपने जज्बात साझा किए तो उनके आंखों में आंसू छलक आए।
अश्विनी ने कभी हार नहीं मानी
पिता सुकुरू प्रसाद बेटे के सेना में जाने के क्षण को याद करते हुए बताया कि अश्विनी सेना में भर्ती होने के लिए कड़ी मेहनत करता था। एक बार सेना में भर्ती के लिए वह मेडिकल फिटनेस में फेल भी हो गया, लेकिन, उसने कभी हार नहीं मानी। नतीजा ये हुआ कि 2017 में वह सेना में भर्ती हो गया। 20 की उम्र में 14 फरवरी 2020 को उसने इस मिट्टी का कर्ज उतार दिया। मेरे बेटे ने मेरे परिवार की पहचान ही बदल दी। मेरी पत्नी बीड़ी मजदूर थी, बेटा नहीं चाहता था कि उसकी मां मजदूरी करे। बेटे के सिर पर सेहरा देखना चाहता था, पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
बेटे का बना लिया मंदिर
पिता सुकुरू काछी और मां कौशल्या ने बेटे की याद में घर में एक छोटा सा मंदिर भी बना लिया है। यहां किसी देवी-देवता का नहीं, बल्कि उनके बेटे अश्विनी काछी की तस्वीर और उसके जीवन से जुड़ी तमाम यादें संजो कर रखी गई है। उसके मेडल, प्रमाण पत्र से लेकर सबकुछ यहां हैं। वर्दी और आखिरी बार जिस तिरंगे में लिपट कर उसे लाया गया था, वो भी अब इस मंदिर में रखा गया है। रोज सुबह मां कौशल्या बाई इस मंदिर की साफ-सफाई करती हैं। बेटे के चित्र पर अगरबत्ती जलाती हैं। मां कौशल्या बाई के मुताबिक उनका लाल अब भी उनकी आंखों में बसा है। मेरे कोख को धन्य कर गया।
दो साल की वो तारीख अब भी याद है
45 वीर जवानों की शहादत वाले पुलवामा हादसे के 2 साल पूरे हो गए हैं। 14 फरवरी 2019 की वो काली तारीख परिवार कभी नहीं भूल पाएगा। कश्मीर के पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले में जबलपुर खुड़ावल निवासी 20 वर्षीय अश्विनी काछी सहित 45 शहीद हो गए थे। दिल को झकझोर देने वाली इस वारदात में वतन पर शहादत देने वाले अश्विनी काछी पर परिवार के साथ ही जिले के हर वांशिदें को गर्व है।
वीरों की धरती है खुड़ावल गांव
3 हजार की आबादी वाले इस छोटे से खुड़ावल गांव में अब 100 से ज्यादा जवान सेना में अपनी सेवाए दे चुके हैं। वर्तमान में करीब 30 जवान देश की सीमा पर तैनात हैं। यहां आने वाले हर 10वें घर में एक जवान पैदा होता है, जो देश के लिए मर-मिटने को तैयार है। जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए अश्विनी इस गांव के तीसरे वीर सपूत हैं। इससे पहले 2016 में गांव के रामेश्वर लाल जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में शहीद हुए थे। जबकि 2006 में राजेन्द्र प्रसाद बालाघाट में नक्सलियों से मुठभेड़ के दौरान वीर गति को प्राप्त हुए थे। इस गांव के युवकों का पहल सपना फोर्स में भर्ती होने का रहता है।
सरकारी घोषणाएं दो साल बाद भी अधूरी
पुलवामा हमले में शहीद अश्विनी काछी के परिवार को सरकारी घोषणाएं पूरी होने की आस अब तक अधूरी है। शहीद के आखिरी विदाई में तत्कालीन सीएम कमलनाथ से लेकर वर्तमान सीएम शिवराज सिंह चौहान भी पहुंचे थे। बड़े भाई सुमंत काछी के मुताबिक तब घोषणा हुई थी कि परिवार के एक सदस्य को नौकरी मिलेगी। गांव को शहीद गांव का दर्जा मिलेगा। शहर में एक आवास मिलेगा। खुड़ावल में अश्विनी के नाम पर स्टेडियम बनेगा। मूर्ति और अशोक स्तंभ का निर्माण तो परिवार ने अपने खर्चे से करा लिया, लेकिन अन्य घोषणाओं की सुध लेना जिम्मेदार भूल चुके हैं।
अश्विनी की याद में भंडारा
अश्विनी काछी की याद में परिवार ने श्रीमद भागवत कथा का आयोजन कराया था। पांच फरवरी से प्रारंभ भागवत कथा की आज पूर्णाहुति हुई। इस अवसर पर शहीद स्मारक प्रांगड़ में भंडारे का आयोजन किया गया है। वहीं सुबह नौ बजे क्रांस कंट्री दौड़ स्पर्धा का आयोजन हुआ। पुरुष वर्ग के लिए 16 किमी तो महिला वर्ग के लिए छह किमी की ये दौड़ आयोजित हुई। आरके स्पोर्ट्स एवं मेमोरियल क्लब के संयुक्त तत्वावधान में इसका आयोजन हुआ।