इंदाैर में काेराेना रिटर्न के बाद खतरे को देखते हुए मंगलवार शाम हुई क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक के बाद बड़ा फैसला लिया गया है। पिछले साल की तरह ही इस बार भी रंगपंचमी पर शहर में निकलने वाली ऐतिहासिक गेर को नहीं निकलेगी। 75 साल में ऐसा दूसरी बार हो रहा है, जब शहर में रंगपंचमी पर गेर नहीं निकलेगी, इसके पहले 2020 में भी गेर पर कोरोना का साया पड़ गया था। हालांकि आपातकाल, दंगों और भीषण सूखे के दौर में भी गेर का सिलसिला नहीं थमा था।
क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक में हुए ये निर्णय
क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक के बाद कलेक्टर मनीष सिंह ने बताया कि कोरोना केस बढ़ने के बाद कुछ फैसले लिए गए हैं। इसमें मास्क पहनना अनिवार्य किया गया है। अब फिर से मास्क नहीं पहनने पर स्पॉट फाइन की ओर हम जा रहे हैं। सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजर अनिवार्य किया गया है। इस स्थिति में शहर में निकलने वाली गेर को मंजूरी नहीं दी जाएगी। आयोजन हाल और ओपन ग्राउंड में 50 फीसदी क्षमता अनिवार्य की गई है। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाना होटल संचालक की जिम्मेदारी होगी। बिना अनुमति कोई आयोजन नहीं होंगे। बड़े आयोजन को अनुमति नहीं दी जाएगी। उठावना और अंतिम यात्रा में 50 लोग ही शामिल हो पाएंगे।
हमारी परंपरा निभाने वाली ये संस्थाएं, इस बार नहीं बिखेरेंगी राजबाड़ा पर रंग
- संगम कॉर्नर- 65 साल
- टोरी कॉर्नर- 74 साल
- मॉरल क्लब- 48 साल
- रसिया कॉर्नर-47 साल
दंगे का माहौल था, कलेक्टर बोले, गेर निकालो तो शहर का माहौल सुधरे
74 साल में हमारी गेर एक बार अभी पांच साल पहले इसलिए रद्द की थी कि आयोजन में शामिल हमारे साथी का उसी दिन निधन हो गया था। इसके अलावा 2002-03 में सूखा पड़ने पर प्रशासन ने कम पानी वाली गेर निकलवाई थी, लेकिन निरस्त तो ये आपातकाल में भी नहीं हुई। उलटे इससे जुड़ा एक अलग किस्सा याद है। 90 के दशक में जब रामजन्म भूमि आंदोलन के दौरान शहर के कई हिस्सों में दंगा हुआ था, तब हमें अंदेशा था कि कहीं प्रशासन गेर निरस्त न करवा दे। उस समय कलेक्टर नरेश नारद थे। उन्होंने हम सबको बुलाया और जो बात कही, उससे हम भी हैरत में पड़ गए। वे बोले- शहर में ऐसा वातावरण देखकर अच्छा नहीं लग रहा, आप लोग इस बार गेर जरूर निकालो। इससे थोड़ा माहौल बदलेगा और ऐसा ही हुआ। गेरों का रंगारंग कार्यक्रम हुआ, उसके बाद शहर में तनाव भी कम हो गया। शेखर गिरि, संयोजक, टोरी कॉर्नर गेर
आपातकाल में प्रशासन के विरोध के बाद भी निकली गेर
आपातकाल के दौरान 1976 में श्यामाचरण शुक्ल मुख्यमंत्री थे। तब प्रशासनिक अफसरों के संकेत मिल गए थे कि इस बार गेर की अनुमति नहीं मिलने वाली। रंगपंचमी से हफ्तेभर पहले तत्कालीन SDM रावत और CSP नरेंद्र सिंह ने हमें बुलाकर कहा कि अगर गेर निकालना हो तो पैदल घूमते हुए निकाल लो, अबकी बार तामझाम जैसे रनगाड़े, तांगे, पानी की टंकियों वाले ठेले साथ नहीं रख सकोगे। हम लोगों ने इसका विरोध कर कहा कि परंपरा में राजनीति का क्या लेना-देना। विरोध के स्वर उठे तो बात भोपाल में मुख्यमंत्री तक पहुंची। उन्होंने कलेक्टर सूद से बात की और कहा, देखो इसका क्या रास्ता निकल सकता है। सूद साहब मल्हारगंज आए और आयोजकों से बोले- आप तो गेर निकालो, परंपरा में हम कहीं बाधा नहीं बनेंगे। हालांकि जाते-जाते अफसर हिदायत दे गए कि हो सके तो राजनीतिक लोगों को इससे दूर रखना। -प्रेमस्वरूप खंडेलवाल, संयोजक संगम गेर
48 साल में कई बार अलग-अलग परिस्थितियां बनी, पर कभी सरकार या प्रशासन की तरफ से गेर निरस्त करने का आदेश आया हो, ऐसा नहीं हुआ। हां, एक बार हमने ही दो साल पहले परिवार में शोक प्रसंग होने से गेर को रद्द किया था। - अभिमन्यु मिश्रा, मॉरल क्लब
पिछले साल 30 हजार लोग पहुंचे थे
पिछले साल इंदौर ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह उत्सवप्रेमी शहर है। काेराेना के कारण रंगपंचमी पर पहली बार गेर और फाग यात्राएं ताे नहीं निकली थीं लेकिन शहर ने खूब-रंग गुलाल उड़ाए थे। कोरोना के खौफ को हराकर राजबाड़ा पर 30 हजार से ज्यादा लोग सुबह से शाम तक पहुंचे थे। हालांकि भीड़ गेर जितनी तो नहीं थी लेकिन राजबाड़ा का चप्पा-चप्पा रंग से सराबोर था। इस दौरान मल्हारगंज क्षेत्र में गेर के आयोजकों ने लोगों का फूलों से स्वागत किया था। हालांकि कोरोना के मद्देनजर पुलिस अधिकारी, सिपाही और नगर सुरक्षा समिति के सदस्यों ने मास्क पहनकर ड्यूटी दी थी। प्रिंस यशवंत रोड से राजबाड़ा आने वाले और खजूरी बाजार से राजबाड़ा आने वाले रास्ते पर बैरिकेड लगाकर पुलिस ने वाहन चालकों के लिए रास्ता बंद कर रखा था। लेकिन गलियों से वाहन चालक राजबाड़ा तक पहुंच ही गए थे।